पारद विज्ञान
स्वर्ण विज्ञान अद्व्तीय और जीवन को जगमगाहट देने वाला
विषय माना गया है.
अनेक लेखक और गुरुदेव डॉ नारायणदत्त श्री मालीजी के अनुसार
जितने भी प्रकार के विज्ञानों और विषयों में यह विषय सर्वश्रेठ हैं.
क्यूंकि यदि इस विज्ञान को सही निर्देशन और सही विधि से किया जाये
तो सम्पूर्ण जीवन को बदला जा सकता है.
पीढियो कि दरिद्रता समाप्त हो सकती है,
और शारीरिक दुर्बलता और अशक्त्ता को समाप्त कर
पूर्ण यौवन व सुन्दरता प्राप्त की जा सकती है.
इस विद्या को दो चरणों में अर्थात् धातुवाद और आयुर्वेद में
प्रयोग कर पूर्ण सम्पन्नता और कायाकल्प दोनों प्राप्त किया जा सकता है.
पारद विज्ञान एक ऐसा विज्ञान है,
जो सही अर्थो में गुरु के सानिध्य में और मार्गदर्शन में ही सीखा जा सकता है. हालंकि इस विषय से सम्बंधित अनेकानेक ग्रन्थ बाजार में उपलब्ध है
किन्तु पढ़ने मात्र से प्रत्येक विधा सीखी नहीं जा सकती.
अभी तक जितने भी ग्रन्थ इस विषय से सम्बंधित प्रकाशित हुए है,
वे सभी या तो संस्कृत में प्रकाशित हैं या फिर इतने जटिल हैं कि
उन्हें सही प्रकार से समझना असम्भव हैं.
इन ग्रंथो को पढ़कर पूरी तरह से ना तो समझा जा सकता और
ना ही प्रयोग में लाया जा सकता है.
इस विषय को सदरुरुदेव डॉ नारायणदत्त श्री मालीजी ने
अत्यंत सरल शब्दों में समझाया एवं
“स्वर्ण तन्त्रंम” नामक पुस्तक के माध्यम से एवं
अनेको पत्रिकाओ में स्वर्ण बनने की विधियां और
आयुर्वेद मैं पारद का प्रयोग स्वास्थ और सोंदर्य की
औषधी बनाने हेतु विधियां प्रकाशित की हैं.
इसी क्रम मै निखिल अल्केमी के माध्यम से
श्री आरिफ निखिलजी ने इस विषय को आप सबके समक्ष
(वर्क शॉप के माध्यम से) प्रायोगिक रूप से प्रस्तूत किया और
इसी क्रम में उन्होंने अपने समस्त अनुभव और ज्ञान को
एक पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित करने का प्रयास किया था
किन्तु जीवन ने ही साथ नहीं दिया.
अब निखिल परा विज्ञान शौध इकाई (प्रकाशन)
इस कार्य को पूर्ण करने कि जिम्मेदारी लेता हैं और
उनकी इस अद्व्तीय कृति (पुस्तक स्वर्ण रहस्यम) को
प्रकाशित करने का एक प्रयास करता है, जो कि अति शीघ्र आप तक पहुचेगी |
रजनी निखिल
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