शनिवार, 12 नवंबर 2016

सोना निर्माण की विधि
सोना आखिर सोना होता है।  वह सिर्फ महिलाओं को ही नहीं,  आदिकाल से पुरूषों को भी आकर्षित करता रहा है। यही कारण है कि प्राचीन काल से सोना बनाने के लिए  लोगों के द्वारा अनेकानेक प्रयोग किये जाते रहे हैं। ऐसे ही कुछ प्रयोगों और विधियों के बारे में बात करते हैं इस बार।                      बौद्ध धर्म का एक चर्चित ग्रन्थ है  'रस रत्नाकर',  जिसके लेखक नागार्जुन माने जाते हैं। इस ग्रन्थ में एक जगह पर रोचक वर्णन है, जिसमें शालिवाहन और वट यक्षिणी के बीच रोचक संवाद है।  नागार्जुन~ शालिवाहन यक्षिणी से कहता है- 'हे देवी, मैंने ये स्वर्ण और रत्न तुझ पर निछावर किये, अब मुझे आदेश दो।' शालिवाहन की बात सुनकर यक्षिणी कहती है- 'मैं तुझसे प्रसन्न हूँ। मैं तुझे वे विधियाँ बताऊँगी, जिनको मांडव्य ने सिद्ध किया है। मैं तुम्हें ऐसे-ऐसे योग बताऊँगी, जिनसे सिद्ध किए हुए पारे से ताँबा और सीसा जैसी धातुएँ सोने में बदल जाती हैं।' शायद 'रस रत्नाकर' जैसी पुस्तकों का ही असर रहा है कि भारत में आम जनता में इस विद्या को लेकर काफी उत्साह रहा है। लोक कथाओं और किवदंतियों में ऐसे अनेक किस्से सुनने को मिलते हैं, जिसमें सोना बनाने का वर्णन आया है। ऐसा ही एक किस्सा विक्रमादित्य के राज्य में रहने वाले 'व्याडि' नामक एक व्यक्ति का है, जिसने सोना बनाने की विधा जानने के लिए अपनी सारी जिंदगी बर्बाद कर दी थी।                                                                                    ऐसा ही एक किस्सा तारबीज और हेमबीज का भी है। कहा जाता है कि ये वे पदार्थ हैं, जिनसे कीमियागर लोग सामान्य पदार्थों से चाँदी और सोने का निर्माण कर लिया करते थे। इसकी चर्चा भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सुनने को मिलती है। इस विद्या को 'हेमवती विद्या'के नाम से भी जाना जाता है।                                                                                                                                                            सोने के प्रति आम आदमी की जबरदस्त भूख का फायदा उठाकर कई कीमियागर अक्सर लोगों को बेवकूफ भी बनाते रहे हैं। अक्सर ऐसे लोग किसी अनजान शहर में पहुँच कर मजमा लगाकर सोने बनाने की विधि का प्रदर्शन करते थे। ऐसा करते समय वे एक बड़े से कड़ाह में तमाम तरह के पदार्थो को मिलाकर पकाते रहते थे और उसे चलाने के लिए अंदर से खोखली छड़ का प्रयोग करते थे। वे अपनी छड़ में सोने की कुछ मात्रा मिलाकर उसे मोम से भर देते थे। गर्म खौलते पदार्थ में जब वह छड़ चलाई जाती थी, तो उसमें जमा सोना निकलकर कड़ाही में आ जाता था और लोग यह समझते थे कि सचमुच कीमियागर ने सोने का निर्माण किया है।
        15वीं सदी में 'गिलीज द लॉवेल' नामक एक ऐसा स्वर्ण पिपासु व्यक्ति हुआ है, जिसने सोना बनाने की विद्या जानने के लिए पागलपन की सीमा को भी लाँघ दिया था। कहा जाता है कि उसे किसी तांत्रिक ने बता दिया था कि यदि वह छोटे बच्चों की बलि चढ़ाए तो शैतान की देवी उसपर प्रसन्न होकर उसे 'फिलास्फर्स स्टोन' का पता बता सकती है।  लॉवेल के इन अमानवीय कृत्यों के कारण उसे 1440 ईसवीं में मृत्युदण्ड दे दिया गया था। 

1 टिप्पणी:

  1. शीर्षक कुछ और बताना कुछ और यह कौन सी सोना बनाने वाली विद्या है भाई बहुत होशियार चालू लगते हैं आप

    जवाब देंहटाएं