शनिवार, 12 नवंबर 2016

स्वर्ण निर्माण 

          पूर्व समय में भारत वर्ष में सोने का निर्माण भिन्न भिन्न विधियों से कर लिया जाता था. 

आज भी यह सभव है. आपके लिए कुछ विधियां दी जाही है. आप खुद सोने का निर्माण कर सकते हैं. 

          दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है. असंभव उनके लिए होता है जो हाथ पर हाथ धरे बैठे होते है. 

इस पेज पर मैं आपको स्वर्ण निर्माण की कुछ विधियां दे रहा हूँ 

जिसे सक्रियता और समझदारी से सोने का निर्माण कर सकते हैं. 

क्योंकि भारत वर्ष में सोना बनाने की कई विधियों की चर्चा हमारे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है. 

यह हैरान होने का विषय नहीं है.

 ऐसे कई भारतीय नाम है जिन्होंने सोना बनाया और समाज की दरिद्रता दूर किया.

 प्रभु देव जी, व्यालाचार्य जी, इंद्रधुम्  जी, रतनघोष जी, और नागार्जुन का नाम तो 

पूरा विश्व स्वर्ण वैज्ञानि के रूप ही जानता है.

प्रथम विधि -
 श्वेतार्क एक पौधा होता है. इसे आंक और मदार भी कहते हैं. 
यह बंजर जमीन, खँडहर आदि स्थानों पर देखा जाता है. यह पौधा विषैला होता है. 
इसमें गुच्छों के रूप में नील रंग का फूल होता है. इसका फल आम की तरह नुकदार होता है.
 अतः इस पौधे को प्राप्त करना चाहिए. किन्तु वह काम से काम ७ वर्ष पुराना होना चाहिए. 
इस पौधे को प्राप्त करने के लिए
 रवि पुष्य, गुरु पुष्य, गणेश चतुर्दशी, अमृत चतुर्दशी या चतुर्दशी के समय में थोड़ा सा पिला चावल धागा, 
मौली ये सामग्रियाँ उस पौधे पर चढ़ाते हुए 
श्रद्धा एकाग्रता से मन्त्र का उच्चारण करें. ॐ नमो गणपतये कुबेराय कदीके फट स्वाहा  
        ऐसा कहकर पौधे को प्रणाम करें और घर चले आएं. 
दूसरे दिन सुबह पांच से साढ़े पांच बजे के बीच पौधे को प्रणाम करे कि,
 हे वनस्पति देव, हमारी जो मन कि कामना है उसे चलकर पूरी करें. 
फिर उस पौधे को जड़ सहित उखाड़कर घर लाएं और किसी उपयुक्त जगह लगा दें. 
इसके बाद बाजार से शुद्ध पारा, मोम तथा थोड़ा लाल कपडा खरीद लें. 
अब इसे रवि पुष्य के दिन शुद्ध स्वस्थ होकर पौधे कि पूजन करें. और 
उसके तने में छेड़ करके जगह बनाकर उसमें फिर छेड़ पर मोम लगाकर लाल कपडे से वह स्थान बांध दें.
 अब रोज सुबह पांच मिनट पौधे के पास बैठकर मन्त्र जाप करें. ॐ गं गणपतये नमः ,
 उस तने पर गाय केदूध कि धारा दें. ऐसा रोज तब तक करे जब तक कि, 
पौधा अपना रंग पीतल, सोना या पीले रंग का न दिखने लगे.
 इसमें समय सीमा कुछ नहीं है. जब पौधा रंग बदल लिया हो 
तो समझिए अंदर पारा सोने का रूप ले लिया है. फिर अंतिम पूजा करके सोने को निकाल लें.
   
द्वितीय विधि - 
यह प्रयोग जड़ी वनस्पतियों के द्वारा होता है. 
नीचेदिए गए सामग्रियाँ जड़ी बूटी की दूकान से प्राप्त किया जा सकता है.
 इनका नाम इस प्रकार है.  सोमवल्ली, चित्रक, रजनी, भूतकेशी, गोखंगी, तुम्बिका और कंदछिरी 
इन्हें प्राप्त करें साथ ही शुद्ध पारा भी खरीद लें.
अब दिए जड़ी वनस्पतियों में से किसी एक में पारा के साथ खेल में १२ घंटे तक खरल में घोटते रहें.
 उसके बाद उसे ताम्बे के प्लेट या पात्र पर डाले तो उक्त पारा सोने में परिवर्तित हो चुकेगा.
 यह विधि भी विश्वसनीय है. आप आजमा सकते हैं. 

तृतीय विधि - 
महर्षि परशुराम की परशुराम ग्रन्थ यह विधि वर्णीत है. 
इस ग्रन्थ में स्वर्ण निर्माण का अद्भुत श्लोक है. 
जिसे नित्य सुनाने से ही जीवन में स्वर्ण की प्राप्ति होने लगती है. 
यदि इस श्लोक का नित्य उच्चारण किया जाय तो घर में लक्ष्मी का आवागमन होने लगता है. 
अतः इस श्लोक को श्रद्धा भाव से श्रवण करे और उच्चारण कर जीवन को स्वर्ण युक्त बनायें.
  श्लोक- पारदं पलमेकं च पलैकम तालकं तथा, 
तत्समं गन्धकं क्षिप्तवा रविदुग्धेन मर्दयेत् , 
तत्सर्व गोकलं कृत्वा स्थालिकायाम विनि छियेत , 
तन्मुखे मुद्रिका दत्वा दीपाग्निम च प्रदापयेत, 
कांचनं जायते दिव्यं देवानामपि दुर्लभम् ..
 प्रयोग - अर्थात एक भाग शुद्ध पारा, एक भाग हरताल, एक भाग गंधक,
 इन तीनों को मिलाकर आक के दूध में अच्छी तरह खरल करें. 
काफी देर बाद जब ये परस्पर आपस में मिल जाये तो 
एक कड़ाही में 10 किलो पानी रखकर उसके बीच में खरल किया पदार्थों का गोला आहिस्ते से रख दें. 
अब कड़ाही को उलटा कटोरे या प्लेट से ढक दें. और 10 से 12 घंटे तक उसे धीमी आंच पर पकाने दें.
 फिर प्लेट या कटोरा हटकर निर्मित हुआ सोना निकाल लें. 
   
चतुर्थ विधि - 
चौथी विधि जो बताने जा रहा हूँ, वह प्रसिद्द स्वर्ण वैज्ञानी नागार्जुन द्वारा प्रामाणिक प्रयोग है.
 नागार्जुन संहिता में इसका स्पष्ट उल्लेख है. 
सूत काम्र कयो  कयोद्वै द्वै तालका पल पश्चकम्,
 तारवंग द्रुते सूते तालक प्रति वापितै, 
पले पक्वर सै ूर्य कतं वंग तार  पलं पलम, 
यवक्षा राक्षका सीसं स्वर्जि (च) कांचन सैंधवम .
प्रयोग - यवक्षार,  नीला थोथा, कसीस, सज्जीखार, और सेंधा नमक, 
इन सभी सामग्रियों को बराबर मात्रा में लेकर नीबू के रस में चार घंटे लगातार खरल करें. 
उसके बाद उसी बराबर मात्रा में पारा को लेकर 
किसी कड़ाही में धीमी आंच पर हरताल के पानी थोड़ा थोड़ा देकर पकाते रहें.
 इस प्रकार 4 सै 5 घंटे पकने के बाद उक्त पारा सुद्ध स्वर्ण में परिवर्तित मिलेगा.  

4 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. Ye kabhi ho hi nahi sakta ye bhram hai na bana hai na koi bana sakta hai purane samay ki bat kuch or thi us samay ke log siksha diksha or guru ka aadar karte the aaj kal ke ladke guru ko hi gandi galiya dete hai ,,,,us samay shoorveer huye shivaji maharaj ,maharana pratap ,,aaj kal ke ladke ladkiyo ke kapde pahna kar danse karva lo or kuch nahi

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