शनिवार, 12 नवंबर 2016

इनके पास था सोना बनाने का फार्मूला, इस तकनीक का करते थे इस्तेमाल

प्राचीन काल के प्रमुख रसायनज्ञों नागार्जुन, प्रभुदेवा,व्यलाचार्य, इंद्रद्युम्र आदि को पारा से सोना बनाने की कला आती थी
अजय खरे@ जबलपुर। 
भारत को सोने की चिडिय़ा कहा जाता था। 
सवाल उठता है कि इतना सोना आखिर आया कहां से। 
क्या यह सोना खदानों से निकाला गया था या फिर प्राचीन काल में उस समय के रसायनज्ञों को ऐसी कोई विधि पता थी जिससे वे सोना बनाया करते थे।
 कहा जाता है कि 1942 में राजस्थान के एक व्यक्ति ने बड़ी मात्रा में सोना बनाने का प्रयोग किया था। 
जहां तक सोना की खदानों की बात है तो जबलपुर संभाग के कटनी जिला में सुंदरपुर नाम के गांव में वह पहाड़ी है जिसमें अभी भी सोना मिलता है। 
बारिश के दिनों में चोरी छिपे लोग इससे सोने के कण एकत्र करते हैं।
पंजाब के एक व्यक्ति ने किया था सोना बनाने का प्रयोग
कहा जाता है कि वर्ष 1942 में पंजाब के कुष्णपाल शर्मा ने 
पारद से सोना बनाने का प्रयोग किया था।
 उन्होंने ऋषिकेश में पारा से करीब 100 किलो सोना बना कर दिखाया था।
 इस प्रयोग का उल्लेख बिड़ला मंदिर में लगे एक शिलालेख में होने का दावा किया जाता है।
 यह बात कितनी सच है इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।
भारतीय ग्रंथों में सोना बनाने का उल्लेख
सायन कला से संबंधित पुराने ग्रंथों में हेमवती विद्या का उल्लेख मिलता है
 जिसमें कुछ धातुओं और रसायनों के मिश्रण से सोना बनाने की कला बताई गई है।
 लेकिन इन सभी कलाओं में पारा का इस्तेमाल प्रमुख बताया गया है। 
इसके अलावा दंत कथाओं में हिमालय में पारस नाम का एक 
सफेद पत्थर मिलने की बात कही जाती है जिसके स्पर्श से लोहे को सोने में बदला जा सकता है।
ये रसायनज्ञ जानते थे सोना बनाने की कला
कहा जाता है कि प्राचीन काल के प्रमुख रसायनज्ञों 
नागार्जुन, प्रभुदेवा,व्यलाचार्य, इंद्रद्युम्र आदि को पारा से सोना बनाने की विधि पता थी। 
धातु शोधन को लेकर नागार्जुन द्वारा लिखे गए प्रमुख गं्रथ रस रत्नाकर में 
शालिवाहन और वट यक्षिणी के मध्य एक संवाद के माध्यम से 
सोना बनाने का उल्लेख किया गया है। 
जो इस बात की ओर इशारा करता है कि उस काल में सोना बनाया जाता था। 
उस संवाद में कॉपर और लैड को सोना में बदलने की बात कही गई है। कहा जाता है कि बिहार की सोनगिर गुफा में लाखों टन सोना है।

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