शनिवार, 12 नवंबर 2016

सोना बनाने के रहस्यमय नुस्खे 3


  ये सब क्रियायें बेहद कठिन हैं और इनके लिये विशेष साधन विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है । जिसमें सबसे मुश्किल तेज ताप की गलाने वाली भट्टी की ही आती है । फ़िर भी इनके छोटे प्रयोग कोई करना चाहें और वांछित वस्तुओं के वर्तमान नाम जानने की दिक्कत आये । तो किसी " आयुर्वेद " की मूल पुस्तक और संस्कृत के शब्दकोष का सहारा लें । वैसे पुराने विद्वान । और वैध लोग इन नामों को अक्सर जानते हैं । ये प्रयोग विशेष रुचि वालो के लिये । शोधकर्ताओं के लिये ही लाभदायक हैं । साधारण आदमी द्वारा ये प्रयोग करना समय और पैसे की बरबादी के अलावा कुछ नही है । लेख प्रकाशित करने का उद्देश्य पाठकों को भारत की महान प्राचीन ग्यान परम्परा से अवगत कराना है । 
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तैलकन्द नाम का कमलकन्द के समान प्रसिद्ध कन्द है । 
इसके पत्ते कमल जैसे होते हैं । इस कन्द से सदा तेल चूता रहता है । 
पानी में दस हाथ की दूरी तक ये तेल फ़ैला रहता है । 
इसके नीचे हमेशा एक महाविषधर रहता है । 
इस कन्द की पहचान ये है कि 
इसमें लोहे की सुई प्रविष्ट करायें तो सुई तुरन्त घुल जाती है । 
इस कन्द को लाकर तीन बार शुद्ध पारे के साथ खरल में पीसो ।
 फ़िर इसका तेल मिला दो ।
फ़िर मूसा में रखकर बांस के कोंपलो की आग में तपाओ। 
ऐसा करने से पारा मर जाता है । और उसमें लक्ष वेधी गुण आ जाते हैं । 
अर्थात साधारण धातु के एक लाख भाग और ऐसे पारे का एक भाग हो ।
 इसको खाने से भूख और नींद पर विजय प्राप्त हो जाती है ।
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शुद्ध हरताल ( orpiment ) लेकर उस कन्द तेल के साथ 20 दिन तक खरल में पीसे। तो वह हरताल मर जायेगी । और निश्चय ही निर्धूम हो जायेगी ।
 याने गरम करने पर उडेगी नहीं । इसे फ़िर आग में डाल दें । 
आठ धातुओं में से किसी को गला लें । गलित धातु में मरी हरताल मिलाये।
 तो सर्व वेधी का कार्य करेगी । 
मरी हरताल और तांबा मिलाने पर सोना बन जायेगा ।
 मरी हरताल के साथ रांगा या कांसा मिलाने पर चांदी बन जायेगी । 
मरी हरताल के साथ लोहा । पीतल ।चांदी मिलाने से सोना बन जायेगा ।
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वज्रमूषा में यदि पारा और लौह सूचीद्राव रस लिया जाय और 
आग में साबधानी के साथ तपाया जाय । तो पारा मर जायेगा । 
इस मरे पारे को किसी धातु से मिलायें । तो वह सोना बन जायेगी ।
 इस मरे पारे को खाने से अमरत्व की प्राप्ति हो सकती है । 
इसे खाने वाले के मलमूत्र से तांबा सोने में बदल जायेगा ।

चेतावनी -- खाने वाला कोई प्रयोग न करें । मेरी आंखों के सामने ही बुझा पारा खाकर अमरता प्राप्त करने की चाहत रखने वाले एक व्यक्ति की 
एक साल तक बेहद कष्ट भुगतने के बाद दर्दनाक मृत्यु हुयी है । 
इस व्यक्ति के शरीर की सभी नसें नीली और हरी हो गयीं थी ।
 और ये हर समय ठन्डे पानी में बैठा रहता था ।
 फ़िर भी इसे गरमी लगती रहती थी । 
दरअसल ये उच्च स्तर के साधु संतो का ग्यान है ।
 जन साधारण को खाने वाले प्रयोग कदापि नहीं करने चाहिये । 
अन्यथा परिणामस्वरूप " मृत्यु " भी साधारण बात है । 
अतः खाने वाला प्रयोग किसी भी अनजानी चीज का कभी न करें । 
बल्कि करें ही न तो बेहतर है ।
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शूद्ध तूतिया लें जो पीले गन्धक से उत्पन्न हुआ हो । 
और आक के दूध के साथ खरल में भावना देकर 
यत्नपूर्वक एक पहर तक अच्छी तरह घोंटे । 
इसमें सीसा के समान धातु मिलाने पर सोना बन जाता है ।
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सीसा और तांबे के मिलने से बने दृव्य के मध्य में मेलापन क्रिया करें ।
 उसमें से कुम्पिका उत्पन्न होती है । 
उसमें तीन बार यत्नपूर्वक सीसा गलायें । 
तो कुम्पिका के बीच में निर्मल स्वर्ण प्राप्त होता है ।

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