शनिवार, 12 नवंबर 2016

क्या है पारद ?
नवीन राहुजा

”पारद“ शब्द में ‘प’ = विष्णु, ‘अ’ = अकार (कालिका), ‘अर = शिव और ‘द’ = ब्रह्मा के प्रतीक है।
आज हम इस लेख के द्वारा यह जानेंगे कि, पारद धातु क्या है ?
पारद एवं पारद से बनी वस्तुओं की शक्ति, लाभ, रहस्य तथा
शिव महापुराण में पारद धातु की उत्पत्ति को लेकर उल्लेख एक सत्यकथा के बारे में,
कथा कुछ इस प्रकार हैं- जब समस्त देवता निरंतर आसुरी शक्ति से पराजित होने लगे थे,
 तब निस्तेज व निर्वीर्य इन्द्रादि देवतागणों ने ब्रह्मा से स्तुति कर
दानवों पर स्थाई रूप से विजय प्राप्त करने का उपाय पूछा।
सृष्टिकर्ता प्रजा पिता ब्रह्मा ने जवाब दिया कि शक्तिपुंज शिव के वीर्य से उत्पन्न
उनका पुत्र यदि देवताओं का सेनापतित्व स्वीकार करे तो निश्चित ही देवताओं की विजय होगी।
 देवताओं के अतिशय विनयपूर्वक आग्रह के कारण
सादाम्ब शिव, पार्वती की ओर पुत्र कामना हेतु प्रवृत्त हुए।
अपने ससुराल में ही नगाधिराज हिमालय की हिमाच्छादित निर्जीव
एकांत गिरि कंदरा में स्वयंभू शिव संभोग की कामना से पर्वतराज की पुत्री की ओर उन्मुख हुए।
देवताओं ने उत्सुकतावश यह जानने के लिए कि
 योगिराज रूद्ररूप शिव काम की ओर प्रवृत्त होते हैं या नहीं।
अग्निदेव को कपोत पक्षी (कबूतर) के रूप में हिमालय की कंदरा में भेजा।
 प्रकृति व पुरुष के विलक्षण संयोग को देखकर
अग्निदेव (कबूतर) के मुंह से गुटरगूं ... गुटरगूं ... का शब्द अनायास ही निकल गया।
अपक्षी स्थान में, कामक्रीड़ा से स्खलित होते हुए शिव ने
कपोत को देखकर लज्जा का अनुभव किया एवं कुछ क्रोध और कौतूहल से
निसृत्त होते हुए वीर्य को कपोदरूपि अग्नि के मुख में डाल दिया।
अग्निदेव इस तेज को सहन न कर सके तथा तेजी से वहां उड़कर
 उस वीर्य का गंगा में त्याग कर शांति का अनुभव किया।
 भागीरथी गंगा ने असह्य उस तेज को पुनः पृथ्वी पर फेंक दिया।
 बृहद रसराज सुंदर के अनुसार गंगा से निसृत्त शिव वीर्य के मल की सिद्धि के कारण
सुवर्णादि धातुएं उत्पन्न हुई।
अत्यंत बोझ एवं वमन के कारण जितना वीर्य अग्नि रूपी कपोत के मुख से गंगा तक पहुंचते-

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