शनिवार, 12 नवंबर 2016

नागार्जुन (रसायनशास्त्री)

नागार्जुन भारत के धातुकर्मी एवं रसायनज्ञ (alchemist) थे। उन्होने रसरत्नाकर नामक रसग्रंथ की रचना की।
शायद अपने समय मे किसी व्यक्ति को लेकर इतनी कहानियां नहीं गढ़ी गई थी जितनी नागार्जुन के बारे मेँ। 
कहा जाता है कि देवी-देवताओँ के साथ उनका सम्पर्क था
 जिससे उनके पास अप धातुओं को सोने में बदलने की शक्ति आ गई थी। 
और वह अमृत बना सकते थे। वह प्रसिद्ध थे और लोग उन्हें सराहना और भय मिश्रित दृष्टि से देखते थे।

परिचय

नागार्जुन का जन्म सन् ९३१ में गुजरात में सोमनाथ के निकट दैहक नामक किले में हुआ था। 
वह रसायनज्ञ आर्थत कीमियागर थे। लोग उनके बारे में ढ़ेर सारी कहानियां कहते थे। 
उससे उन्हें कभी व्याकुलता या परेशानी नहीं हुई थी। 
इस लोक-विश्वास को कि वह भगवान के संदेशवाहक हैं, रसरत्नाकर नामक पुस्तक लिख कर पुष्ट कर दिया।
 यह पुस्तक उनके और देवताओं के बीच बातचीत की शैली में लिखी गई थी। 
रसरत्नाकर में रस (पारे के यौगिक) बनाने के प्रयोग दिए गये हैं।
 इसमें देश में धातुकर्म और कीमियागरी के स्तर का सर्वेक्षण भी दिया गया था। 
इस पुस्तक में चांदी, सोना, टिन और तांबे की कच्ची धातु निकालने और उसे शुद्ध करने के तरीके भी बताये गए हैं।
पारे से संजीवनी और अन्य पदार्थ बनाने के लिए नागार्जुन ने 
पशुओं और वनस्पति तत्वों और अम्ल और खनिजों का भी इस्तेमाल किया। 
हीरे, धातु और मोती घोलने के लिए उन्होंने वनस्पति से बने तेजाबों का सुझाव दिया। 
उसमें खट्टा दलिया, पौधे और फलों के रस थे।
 उन्होंने और पहले के कीमियागरों ने जिन उपकरणों का इस्तेमाल किया था उसकी सूची भी पुस्तक में दी गई है। आसवन (डिस्टीलेशन), द्रवण(लिक्वीफेक्शन), उर्ध्वपातन (सबलीमेशन) और भूनने के बारे में भी पुस्तक मे वर्णन है। पुस्तक में विस्तारपूर्ण दिया गया है कि अन्य धातुएं सोने में कैसे बदल सकती हैं।
 यदि सोना न भी बने रसागम विशमन द्वारा ऐसी धातुएं बनाई जा सकती हैं जिनकी पीली चमक सोने जैसी ही होती थी। हिंगुल और टिन जैसे केलमाइन से पारे जैसी वस्तु बनाने का तरीका दिया गया है।
नागार्जुन ने सुश्रुत संहिता के पूरक के रूप में 'उत्तर तन्त्र' नामक पुस्तक भी लिखी। 
इसमें दवाइयां बनाने के तरीके दिये गये हैं। आयुर्वेद की एक पुस्तक `आरोग्यमञ्जरी' भी लिखी।
 उनकी अन्य पुस्तकें है- कक्षपूत तन्त्र, योगसर और योगाष्टक।

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