शनिवार, 12 नवंबर 2016

नागार्जुन

                                                                       
नागार्जुन 

                      नागार्जुन सिद्ध योगी एवं रसायनाचार्य थे। इतिहासवेत्ताओं के अनुसार नागार्जुन का जन्म दूसरी शताब्दी ईसवी में हुआ था। नागार्जुन गुजरात प्रान्त के देहक दुर्ग ( सोमनाथ के निकट) के निवासी थे। 
                   नागर्जुन का बाल्यकाल नालन्दा के बौद्ध विहार में बीता विहार के मुख्य अधिष्ठाता आचार्य राहुल भट्ट ने लम्बी आयु पाने के लिए एक मंत्र विशेष का जप करने हेतु आदेश दिया। इस मंत्र का विधिपूर्वक जप करने से नागार्जुन को दीर्घायु प्राप्त हुई। नालन्दा में नागार्जुन ने बौद्ध साहित्य तथा त्रिपिटिक का गहन अध्ययन किया, इसके पश्चात वे बौद्ध भिक्षुक बन गए।
                     नागार्जुन ने दक्षिण भारत में श्री शैल पर्वत पर एक मठ  की स्थापना की थी। इसी राह में उनके द्वारा शोध एवं अनुसंधान किये गए। अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों के आधार पर इन्होने कीमियागिरी पर प्रसिद्ध ग्रन्थ रसरत्नाकर की रचना की। कक्षपुटतंत्र, आरोग्यमंजरी, योगसार तथा योगशतल आदि ग्रन्थ भी इनके द्वारा रचित हैं।
रसरत्नाकर  - यह पुस्तक कीमियों से सम्बंधित है। इस पुस्तक में धात्विक यौगिकों-विशेष रूप से पारे (रस Chemical) के यौगिक बनाने एवं उनके उपयोग का वर्णन है। इसी पुस्तक में वनस्पति और धातुओं को अन्य यौगिकों में परिवर्तन की विधियों को भी बताया गया है। 
                   प्रयोगशाला में नागार्जुन ने पारे पर बहुत प्रयोग किये। विस्तार में उन्होंने पारे को शुद्ध करना और उसके औषधीय उपयोग की विधियों को बताया। अपने ग्रंथों में नागार्जुन ने विभिन्न धातुओं के मिश्रण तैयार करने, पारा तथा अन्य धातुओं का शोधन करने, महारसों का शोधन तथा विभिन्न धातुओं को स्वर्ण या रजत में परिवर्तन करने की विधियों का वर्णन किया है। पारे के उपयोग से शरीर को निरोगी बनाने की विधियों को भी इसी पुस्तक में बताया गया है। पुस्तक में वर्णित विधियों का विवरण संस्कृत में सूत्र रूप में श्लोकबद्ध है। इसकी भाषा  बहुत ही गूढ़ और रहस्यमयी है, अतः इन विधियों का प्रयोग कर पाना अत्यंत दुःसाध्य है। इस ग्रन्थ में पारे के साथ ही उस समय तक ज्ञात सभी धातुओं, रस, महारस, उपरस के विवरण दिए गए हैं। यहाँ इसका आशय Chemical से है। उस समय पारद (पारा ) का उपयोग लोहसिद्धि (लोहे को सोने में परिवर्तित करना) के लिए विशेष रूप से किया जाता था। 
               इस ग्रन्थ में जस्ते के खनिज (रसक) से जस्ता निकालने की विधि का वर्णन भी दिया गया है। रसक के साथ तांबे को गलाकर पीतल बनाने की विधि का भी इसमें वर्णन है। चाँदी, तांबा, सीसा और जस्ता को पारे के साथ मिलाकर हरिताल से पीला रंग कर सोना बनाने की प्रक्रिया भी इसमें वर्णित है। नागार्जुन ने पारे के शोधन के लिए किये जाने वाली पूरी प्रक्रिया का वर्णन अपने ग्रंथों में किया है। आज के वैज्ञानिक आविष्कारों ने स्वीकार कर लिया है कि एक धातु को दूसरी धातु में बदलना संभव है। 
                  नागार्जुन ने कठोर तपस्या और सतत साधना से सिद्धि प्राप्त की थी। उन्होंने प्राणिमात्र के कल्याण हेतु धातुओं के अधिकाधिक यौगिक तैयार किये, जिनका औषधियों के रूप में प्रयोग किया गया। 
                   वैज्ञानिक नागार्जुन अपने समय के सर्वश्रेष्ठ लोक-सेवी, विलक्षण प्रतिभा एवं लग्नशीलता के धनी वैज्ञानिक थे।    

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